Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - जब यह दीप थके -महादेवी वर्मा

जब यह दीप थके -महादेवी वर्मा 

जब यह दीप थके तब आना।

 यह चंचल सपने भोले हैं,
दृग-जल पर पाले मैने, मृदु
 पलकों पर तोले हैं;
दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!

साधें करुणा - अंक ढली है,
सान्ध्य गगन - सी रंगमयी पर
 पावस की सजला बदली है;
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!

यह उड़ते क्षण पुलक - भरे है,
सुधि से सुरभित स्नेह - धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है;
दे तारो के प्राण इन्हीं से सूने श्वास बसाना!

यह स्पन्दन हैं अंक - व्यथा के
 चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की
 बिखरी विस्मृत क्षार - कथा के;
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख - लिख अजर बनाना!

लौ ने वर्ती को जाना है
 वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने
 रज का अंचल पहचाना है;
चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना! 

   0
0 Comments